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उपलब्धियां

  • वन जैवमात्रा से पर्यावरण अनुकूल प्राकृतिक रंजक(डाई)

प्रस्तावनाः

कपड़े पर छपाई एवं रंग करने के लिए प्राकृतिक रंजकों (डाई) का उपयोग किया जाता है। गत् शताब्दी के मध्य तक रंजकों (डाई) को पौधों अथवा पशु स्रोतों से प्राप्त किया जाता था। कृत्रिम रंजकों (डाई) के अधिक प्रयोग करने के कारण प्राकृतिक रंजकों का उपयोग कम हो गया था, परन्तु वर्तमान समय पर्यावरण मित्र (हरी वस्त्र) के बारे में जागरूकता के कारण प्राकृतिक रंजकों (डाई) की मांग में वृद्धि हो रही है। भारत में व विदेशों में हर्बल डाई का उपयोग मुख्य रूप से शिल्पकार, खादी व कुटीर उद्योगों, छोटे निर्यातक, ऊँची कीमत वाले वस्त्र, निम्न स्तर की डाई इकाइयों, गैर-सरकारी संगठनों आदि के कारण किया गया है, कभी-कभी अधिक मात्रा की मांग के कारण कृत्रिम रंजकों के प्रतिकूल स्वास्थय व वातावरणीय प्रभाव से पौधों से ही प्राकृतिक रंजक उत्पादन व संसाधनों का पता लगाया जा रहा है। यद्यपि रंजकों (डाई) के रंगों व घटते संसाधनों की सीमा प्राकृतिक डाई के विकास में प्रमुख बाधाएं है।

तकनीकः

रसायन प्रभाग, वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून ने जंगलों/कृषि वानिकी क्षेत्रों से प्रचुर मात्रा में मिलने वाले वन उत्पादों को प्रयुक्त कर प्राकृतिक रंजकों का निर्माण किया हे। जिसका प्रयोग उज्जवल व तेज रंगो के कपड़ों पर किया जा सकता है। रंजकों को पूर्ण उच्च मानकता हेतु सभी मानक पूर्ण किये गये, निकाले गये रंजक (डाई) के भौतिक व रासायनिक गुणों पर खरा उतारा गया जो कि सिथरता के लिए फैबरिक पर भी कृत्रिम रंजक के साथ तुलना योग्य पाया गया।

लाभः

प्राकृतिक रंजको (डाई) में डाई के उच्चतर गुण है, बल्कि औषधीय गुण भी व्यापकत श्रेणी में है। यह पाया गया कि प्राकृतिक रंजक (डाई) त्वचा के लिए हानिकारक नहीं होते। रंगीन कपड़े (फैबरिक) पर भी तकनीक व उत्पादन सरल, तीव्र व पर्यावरण अनुकूल है। इस तकनीक में प्राकृतिक रंजक आधारित कपड़ा उद्योग खादी व कुटीर उद्योग, गैर सरकारी संगठनों आदि के लिए अपार सम्भावनाएं है।

  • समृद्धि

समृद्धिः एक उन्नत रासायनिक संरचनात्मक पदार्थ है। यह रेशम उत्पादन बढ़ाने एवं रेशम कीट पालकों हेतु वीड्स उत्पाद से विकसित किया गया है। इसका परीक्षण क्षेत्रीय रेशम उत्पादन केन्द्र (सहसपुर) में किया जा चुका है।समृद्धिः एक उन्नत रासायनिक संरचनात्मक पदार्थ है। यह रेशम उत्पादन बढ़ाने एवं रेशम कीट पालकों हेतु वीड्स उत्पाद से विकसित किया गया है। इसका परीक्षण क्षेत्रीय रेशम उत्पादन केन्द्र (सहसपुर) में किया जा चुका है। यह शहतूत की पत्ती (बाम्ँबेक्स मोरी अल्बा) पौधे की साम्रगी 100 ग्राम हेतु 10 मिलीलीटर शीशी की आवश्यकता होगी। 10 मिलीलीटर समृद्धि को एक लीटर पानी में मिलाने पर छिड़काव पत्ती-(1.5 किलोग्राम) शहतूत पर किया जायेगा जो कि 900 रेशम कीड़ों को देगा जिससे कोकूनों का समुचित विकास 12-ं15 घण्टे में कर देगा, जबकि सामान्यत परिपक्वता हेतु 24-36 घण्टों में विकसित होता है। जिससे चारा व श्रम लागत कम होगी व उत्पादन वृद्धि होगी।

लाभः समृद्धि एक आशाजनक रेशम उत्पादन वृद्धि के रूप में स्थापित होगा जिससे लागत कम व अधिकतम उत्पादन हो जायेगा जो कि किसानों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनायेगा।

यह निम्नांकित उपयोगी है-

  1. चारे की खपत कम होगी।
  2. कताई समय कम होगा।
  3. सीमित कताई।
  4. रेशम उत्पादन में वृद्धि।

विपणन क्षमताः उत्पाद लागत प्रभावी क्योंकि यह बीड्स उत्पाद से बनाया गया है यह खेती आधारित है व कम पूँजी लागत से भी प्रारम्भ किया जा सकता है। सामान्यतः रेशमी वस्तुओं अमीर व मध्यम वर्ग उपभोक्ताओं द्वारा खरीदी जाती है इनकी लागत मूल्य 57 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादकों को प्राप्त हो जाते है।

आर्थिक माॅडल एवं व्यवसायीकरणः कई सामाजिक-आर्थिक अध्ययनों ने साबित किया है कि रेशम उत्पादन में लाभ, लागत कृषि फसलों में अधिक है। उत्पादों की मूल्य वृद्धि हेतु प्रभावी उपयोग भी उपलब्ध है।
भारतीय पेटेन्ट आवेदन सं0 1401/डी0एल0/2013 के द्वारा शहतूत रेशम कीट की सिक्रनाइज परिपक्वता के लिए एर्मस्थैसइएड से फाॅइटो एक्सी स्टेराइड प्राप्त करने की प्रक्रिया शीर्षक वाली पेटेन्ट

  • जीवीकल्प-अगरबत्ती निर्माण हेतु एक नया एवं प्रभावी बंधक

अगरबत्ती निर्माण हमारे देश का प्राचीन परंपरागत व्यवसाय रहा है। भारत विश्व में सर्वाधिक अगरबत्ती निर्माण करता है। अगरबत्ती निर्माण हेतु कच्चा माल जैसे बांस की तीलियाँ, चारकोल, जिगत बुरादा तथा अन्य सुगंधित उत्पाद जो आसानी से जल सकें जैसे चंदन लकड़ी, अगर, कपूर, बोसविलिया आदि वनों से प्राप्त किये जाते हैं।
बंधक साम्रगी (जिगत) को उच्च मानकता की कसौटी पर परखा जाता है। यदि बंधक साम्रगी वांच्छित गुणवत्ता की नही है तो उत्कृष्ट अगरबत्ती नहीं बन सकती। मैचिलस मैकरान्था एवं मैदा लकड़ी (लिटसिया चाइनैसिस) की छाल के बुरादे यानि जिगत में चारकोल एवं सुगंधित मिश्रण साम्रगी को बांस की तिलियों में लपेटा जाता है। जिगत इन अव्यवों को पूर्णतः बांध लेता है।
उल्लेखनीय है कि जिगत बुरादे हेतु पेड़ों की छाल का अत्यधिक दोहन होने के कारण वन उत्पाद समाप्त होने लगे है, अतः इनके दोहन पर रोक लगा दी गयी है। यदि इन वन ऊपजों को वनों से प्राप्त करने हेतु व्यवसायिक वृक्षारोपण द्वारा उत्पादन का प्रयास भी किया जाये तो इनसे वांछित छाल 20-30 वर्ष पश्चात ही प्राप्त की जा सकती है।

जीविकल्प, एक नवीन मिश्रण

रसायन प्रभाग, वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून ने एक वनबंधक पदार्थ तैयार किया है। स्थानीय रूप से प्रचुर मात्रा में उपलब्ध पदार्थों से कच्चा माल एवं बंधक बनाया गया हे जिसका उपयोग कर एक गुणवत्तापूर्ण अगरबत्ती तैयार की जा सकती है। नवीन मिश्रण का मुख्य आधार नवीकरणीय वन एवं कृषि उत्पाद हैं, जिनसे अगरबत्ती उद्योग की आवश्यकताएँ पूर्ण की जा सकती है।

लाभः

जीविकल्प निम्न कारणों से लाभदायक हैः

  1. इसके उपयोग से मैचिलस मैकरान्था एवं मैदा लकड़ी जैसी बहुमूल्य प्रजातियों का संरक्षण किया जा सकता है।
  2. जीविकल्प के घटकों के देश में ही प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने से इनके आयात में कटौती हो सकती है।
  3. परस्पर बैचों के गुण व प्रभाव में भिन्नता नहीं होती है।
  4. इससे निर्मित अगरबत्ती में सुगंध समान रूप से विसरित होती है।
  5. अगरबत्ती पूर्णतः आसानी से ज्वलनशील है।
  6. कच्चे माल की अपनी कोई गंध नहीं है।
  7. प्रयोग में आने वाला बंधक पदार्थ अगरबत्ती निर्माण के दौरान स्वास्थय को नुकसान नहीं पहुंचाता है।
  8. अगरबत्ती का व्यवसायिक उत्पादन अधिक आसानी से किया जा सकता है।
  9. अंतिम उत्पाद के मानकता नियत्रंण स्थाई एवं प्रमाणित है।

जीविकल्प से बनी अगरबत्ती किसी भी प्रकार के ज्वलनशील क्षारीय-धातु एवं लवणों से मुक्त है। यह तकनीक प्रयोगशाला में भली-भांति जांची गयी है। यह उत्पाद व्यवसायिक अगरबत्ती की सभी विशेषताओं सहित वाणिज्यक मानकों पर खरा उतरता है। यह तकनीक अगरबत्ती निर्माताओं कोे हस्तांतरित की जा चुकी है तथा अन्य इच्छुक अगरबत्ती उत्पादकों को भी हस्तान्तरित की जा सकती है।

  • पादप जैव मात्रा से कम्पोस्ट बनाने की सरल तथा त्वरित विधि

प्रस्तावनाः

रासायनिक उर्वरकों के हानिकारक प्रभाव के कारण मृदा की उत्पादक क्षमता में कमी आई है, साथ ही साथ लोगों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। अतः जैव उर्वरकों के प्रयोग पर व्यापक सहमति बनी है। जैव उर्वरक प्राथमिक मृदा कंडीशनर होते है जिसे मिट्टी में मिलाने से जैविक तत्व में वृद्धि होती है। जैव उर्वरक मृदा की पारगम्यता तथा जल संधारण करने की क्षमता बढ़ाते है। उल्लेखनीय है कि जैव उर्वरक, कृषि भूमि, बंजर तथा बेकार भूमि का उन्नयन करके खेती के योग्य बनाता है। उपरोक्त तथ्यों के संदर्भ में जैव उर्वरकों का प्रयोग अपेक्षित हो गया है। ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों जैसे-एल.पी.जी., केरोसिन, बिजली व सौर ऊर्जा की उपलब्धता के कारण प्रचुरता से उपलब्ध वन जैव मात्रा जैसे छाल, पत्तियां, छोटी शाखाएं व बुरादे का ईंधन में प्रयोग घट गया है, और ये पदार्थ प्रचुरता में उपलब्ध है, जिनसे जैव उर्वरकों का निर्माण किया जा सकता है। वन जैव मात्रा से निर्मित उर्वरक का प्रयोग कृषि, होर्टीकल्चर (बागवानी) तथा वनीकरण में सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

तकनीकः

परंपरागत तरीके से जैव मात्रा के कम्पोस्टींग में 6 महीने से अधिक का समय लगता है, और इसमे खनिज पोषकों की मात्रा भी न्यून होती है। इस कारण, सामान्यतः किसान लोग मृदा उर्वरता के लिए उच्च लागत व हानिकारक प्रभावों के बावजूद रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को ही महत्व देते हैं। रसायन प्रभाग, वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून द्वारा विकसित त्वरित विधि से 20- दिनों की अवधि के भीतर वन जैव मात्रा से कम्पोस्ट के निर्माण हेतु एक सरल प्रक्रिया विकसित की गई। इस प्रक्रिया का मुख्य लक्ष्य पोषणीय उच्च उत्पाद के साथ-साथ मृदा व पर्यावरणीय स्वास्थ्य के रखरखाव हेतु उच्च स्तरीय कम्पोस्ट को प्राप्त करना है।

लाभः

  1. प्रचुरता से उपलब्ध बुरादे/छाल/पत्तियों इत्यादि का इस्तेमाल।
  2. लगभग 03 गुणा जल संधारण क्षमता।
  3. उत्तम वातन के लिए मृदा संरध्रन।
  4. नाइट्रोजन की मात्रा फार्म यार्ड उर्वरक के समतुल्य।
  • यूकेलिप्टस हाईब्रिड पत्तियों से जैव सक्रिय उर्सोलिक अम्ल प्राप्त करने की आसान विधि

उर्सोलिक अम्ल (Ursolic acid) एक जैव सक्रिय यौगिक है। औषधीय एवं काॅस्मेटिकस में उपयोग हेतु इसमें विभिन्न जैव-गुण, ट्यूमर, ज्वलनशीलता, हिपेटोप्रोटेक्टिव, अल्सर, माइक्रोबियल, हाइपर-लिपिडेमिक, एचिंग व वाइरल(संक्रमण) प्रतिरोधी पाये जाते है। पायसीकारक एजेंट के रूप में इसका औषिधयों, कॅास्मेटिक्स व भोज्य उत्पाद (खाने वाली साम्रगी) में भी प्रयोग किया जाता है। उर्सोलिक अम्ल को विभिन्न पादपों से अनेक विधियों से प्राप्त करने की जानकारी उपलब्ध है। परन्तु ये विधियाँ न तो किफायती है और न ही स्त्रोत पादप (पौधे) अधिक मात्रा में उपलब्ध है। अतः बहुतायत में उपलब्ध यूकेलिप्टस हाईब्रिड पत्तियों से उर्सोलिक अम्ल प्राप्त करने की विधि विकसित की गयी है। यह विधि आसान है व इसमें क्रोमेटोग्राफी तकनीकों के उपयोगों के स्थान पर इसमें पत्तियों का विलायक के द्वारा निष्कर्षण किया जाता है। यह तकनीक सरल, ग्रहणीय तथा कच्चा माल बहुतायत में उपलब्ध होने तथा पूंजी आवश्यकता कम होने के कारण कम लागत की है। उर्सोलिक अम्ल की उद्योगों में व्यापक मांग है। अतः विकसित तकनीक यूकेलिप्टस हाईब्रिड पत्तियों से उर्सोलिक अम्ल उत्पादन करने के लिए उद्योगों को एक अच्छा अवसर प्रदान करता है।

  • पोप्लर की पत्तियों से प्रोटीन कंसट्रेट (एलपीसी) उत्पादन की विधि

पादप पत्तियाँ प्रोटीन कंसट्रेट उत्पादित करने का एक प्रचुर तथा कम लागत वाला स्रोत है। लीफ प्रोटीन कंसट्रेट (एलपीसी) का उपयोग प्रोटीन संकट तथा कुपोषण की समस्या को हल करने में प्रभावी है। एलपीसी का उपयोग पशुओं के चारे में प्रोटीन पूरक के रूप में भी किया जा सकता है। वृक्षों को एलपीसी उत्पादन का एक अच्छा स्रोत माना गया है। वृक्षों की पत्तियों से एलपीसी का उत्पादन फसलों की तुलना में लाभकारी है क्योंकि वृक्षों की पत्तियों को उगाने के लिए बार-बार लागत नही आती है। पोप्लर काष्ठ को पल्प तथा पेपर उत्पादन करने वाले उद्योगों द्वारा उपयोग किया जाता है। पोप्लर काष्ठ को वृक्षों से पृथक करने के दौरान इनकी पत्तियाँ बहुतायत में उपलब्ध रहती है तथा वर्तमान में इनका कोई समुचित उपयोग नही है। पोप्लर की पत्तियों से एलपीसी उत्पादन करने की विधि विकसित की गयी है। यह तकनीक सरल, ग्रहणीय तथा कच्चा माल बहुतायत में उपलब्ध होने तथा पूंजी आवश्यकता कम होने के कारण कम लागत की है। वैश्विक स्तर पर पादप आधारित प्रोटीन का एक व्यापक बाजार है। भोज्य पदार्थ तथा चारा उत्पादित करने वाले उद्योगों में ऐसे वैकल्पिक प्रोटीन स्रोतों की माँग बढ़ रही है जो ज्यादा सतत् हों, शाकाहारी हों और एलर्जी रहित हों। अतः पोप्लर पत्तियों से प्रोटीन कंसट्रेट का उत्पादन प्रोटीन निर्माणकर्ताओं के लिए एक अच्छा व्यवसायिक अवसर प्रदान करता है।

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