वन संरक्षण प्रभाग

समाचार और कार्यक्रम

वन संरक्षण प्रभाग

वन अनुसंधान संस्थान, देहारादून की स्थापना वर्ष 1906 में की गयी थी जिसमें प्रमुख रूप से छः शाखाएँ  खोली गयी थीं. उनमें से प्रमुख एक शाखा अब वन कीट विज्ञान प्रभाग है।

देश की इस प्राचीन संस्था के इस प्रभाग में देश के प्रख्यात कीट वैज्ञानिकों जैसे डॉ॰ ई.पी.स्टेबिंग (1900-1902 एवं अगस्त 1906 – दिसंबर,1909), श्री. वी.एस. अय्यर (जनवरी, 1910 – अक्टूबर,1911), डॉ. ए.डी. इम्स (नवम्बर, 1911- फरवरी, 1913); डॉ. सी.एफ.सी. बीसन (मार्च, 1913-अगस्त 1941); डॉ. जे.सी.एम. गार्डनर (सितंबर, 1941- मई, 1947); श्री. ए.एच. खान (जून, 1947- सितम्बर,1947); डॉ. एन.सी. चटर्जी (मार्च, 1948- नवम्बर, 1949); डॉ. एम.एल. रुनवाल (दिसम्बर, 1949- जुलाई, 1956); डॉ. आर. एन. माथुर (अगस्त, 1956 – अक्टूबर 1961); डॉ. पी.एन. चटर्जी (नवंबर,1961- दिसम्बर, 1970); डॉ. पी.के.सेन-शर्मा (जून, 1970- मई, 1973 एवं सितम्बर, 1976- अगस्त, 1982); श्री. प्रताप सिंह (जून, 1973- अगस्त, 1976 एवं अक्टूबर, 1983- जुलाई, 1989); श्री. अविनाश चंद्रा (सितम्बर,1982- सितम्बर, 1983); डॉ. एम.एल. ठाकुर (अगस्त, 1989- अगस्त, 1995); डॉ. एच.आर. खान (सितंबर,1995- अक्टूबर, 2002); डॉ. एम. अहमद (नवम्बर, 2002- जुलाई,2008); श्री. आर.एस. भंडारी (अगस्त,2008- जून 2009) एव् डॉ. आर.के. ठाकुर (जुलाई 2009- अगस्त, 2010); आदि प्रभाग प्रमुखों द्वारा योगदान दिया गया है। .

हमें गर्व है कि आज जो भी वन कीटों के संबंध में जानकारियाँ उपलब्ध हैं वह इस वन कीट विज्ञान प्रभाग द्वारा ही उत्पादित की गयीं हैं।

प्रभाग की कुछ विशेष उपलब्धियाँ

  • प्रभाग में मुख्य रूप से वानिकी के महत्व के अदभुत  कीटों का एक विश्वविख्यात राष्ट्रीय वन कीट सँग्रहालय है। जिसमें लगभग 18500 प्रमाणित वन कीटों की प्रजातियाँ उपलब्ध हैं जिनमें 1900 टाइप प्रतिरूप  सम्मिलित हैं।
  • प्रभाग द्वारा देश के लगभग सभी महत्वपूर्ण प्राकृतिक एवं वानिकी पेड़ों एवं काष्ठ की प्रजातियों के सभी नाशिकीटों की पहचान करके, पेड़ों की उत्पादकता बढ़ाने हेतु उनके प्रभावी प्रबंधन के तरीकों की खोज की गयी है।
  • यूकेलिप्टस के गाल कीट लेप्टोसाइबे इन्वासा का पंजाब में सफलतापूर्वक जैविक नियंत्रण  किया गया है ।
  • राष्ट्रीय वन कीट संग्रहालय में कीटों का डिजिटिकरण किया गया है ।
  • पोपलर की पत्ती खाने वाले हानिकरक कीट, क्लोस्टेरा क्यूप्रियेटा की ट्राइकोग्रेमा पोली परजीव्याभ द्वारा जैविक नियंत्रण विधि की खोज की गयी है।
  • हमारे देश में साल के जंगलों में साल काष्ठ वेधक होपलोसेरामबिक्स स्पाइनीकोर्निस की गंभीर समस्या है जिसके नियंत्रण के लिए प्रभाग द्वारा वयस्क  भृंग कीट का पेड़ प्रपंच विधि द्वारा नियंत्रण की खोज की गयी है।
  • दीमक कीट के प्रति काष्ठ की प्राकृतिक प्रतिरोधकता जाँच विधि की तकनीक की खोज की गयी तथा विभिन्न काष्ठ प्रजातियों को उनके प्रतिरोधकता के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।
  • देश में पहली बार सागौन, देवदार, पापलर एवं चीड़ के हानिकारक कीटों के प्रबंधन के लिये हवाई जहाज द्वारा कीटनाशक का छिड़काव किया गया।
  • प्रभाग में कीटनाशकों के प्रभावी एवं सस्ती  प्रयोग विधि – मृदा में ड्रिप लाइन एवं पेड़ों में इंजेक्शन के प्रयोग की विधि की खोज की गयी  जोकि वातावरण को कम प्रदूषित करती है।
  • प्रभाग में सामान्य लोगों एवं शोधकर्ताओं की जानकारी के लिए, एक वन कीट संग्रहालय बनाया गया है जिसमें कीटों का वन पारिस्थितिकी एवं मानव कल्याण  के  महत्व को दर्शाया गया है।
  • प्रभाग ने कीट वर्गीकरण विशेषकर भृंगों, दीमकों, एवं परजीवी हाईमेनोप्टेरा इत्यादि के वर्गीकरण के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया है। प्रभाग एवं विभिन्न संस्थाओँ के वैज्ञानिकों द्वारा देश-विदेश से एकत्रित, पोषित एवं संरक्षित कीटों से  हजारों  नयी कीट प्रजातियों की खोज की गयी है।
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