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समाचार और कार्यक्रम

अकाष्ठ वनोपज

प्रभाग/कार्यालय का सामान्य परिचय/प्रस्तावनाः

अकाष्ठ वन उपज प्रभाग (पूर्वांन्तर में लघु वन उत्पाद शाखा ) की नीव 19वी शताब्दी में मि0.जे. एस.गेम्बल द्वारा सर डाइट्रिस ब्रांडिस के दिशा-निर्देशन में 1878 में भारत के लघु वन उत्पादों का एकत्रण करने हेतु  रखी गई थी।

इस एकत्रण का एक हिस्सा इम्पीरियल फाॅरेस्ट स्कूल देहरादून, जो तभी खुला था, को स्थानान्तरित कर दिया गया था। सर ब्रांडिस द्वारा 1891 में इन एकत्रणों को एक नियमित संग्रहालय के रूप में स्थापित किया। जिसका 1892 में मि. गेम्बल द्वारा सुधार किया गया। तत्पश्चात अनेक अधिकारियों द्वारा समय-समय पर उनके अथिक प्रयासों तथा एकत्रणों से वर्तमान उत्कृष्ट संग्रहालय स्थापित हुआ। जिसे वर्तमान में  अकाष्ठ वन उपज’ संग्रहालय के नाम से जाना जाता हैं।

 

अकाष्ठ वन उपज क्या हंै ?

‘अकाष्ठ वन उपज’ पुराने शब्द  ‘ लघु वन उत्पाद ‘  का परिवर्तित एवं नवीनीकृत नाम  है। 1954 में चतुर्थ विष्व वानिकी कांग्रेस द्वारा  ंएम.एफ.पी. शब्द को ‘आर्थिक वन उत्पाद’ का नाम दिए जाने का सुझव दिया था। टिम्बर एवं ईंधन की लकड़ी को छोड़कर, समस्त वन उत्पाद के समाविष्ट हेतु हाल ही में फिर से इस शब्द का परिवर्तित रूप अकाष्ठ वन उपज‘’ किया गया।

 

वनों से उपलब्ध, इमारती एवं जलाउ लकड़ी को छोड़, जो भी अन्य वन उत्पाद वनस्पति अथवा जन्तुओं पर आधारित/द्वारा उत्पादित, मनुष्यों द्वारा अपने रोजमर्रा उपयोग एवं जीवन यापन हेतु एकत्रित किए जाते हैं उन्हें अकाष्ठ वन उपज कहते हैं। भारत में एक आंकलन द्वारा लगभग 275 मिलियन लोगों को उपरोक्त उपज पर निर्भर  माना गया है।

 

समाजिक एवं आर्थिक महत्व के अकाष्ठ वन उत्पादों में जाने पहचाने उपज जैसे पत्तियों, बांस तथा केन्स, गोंद, लार एवं ओलिवो-लार, तेलीय बीज, सुगंधित तेल, रेशे एवं लोभक, टैन्स एवं डाइज ( रंग ) , दवाई एवं मसाले , अन्य खाद्य पदार्थ एवं पशु उत्पाद इत्यादि शामिल हैं।  राष्ट्रीय आर्थिकी में इन उत्पादों का समुचित योगदान अत्यधिक अपरिमाणिक ( अमात्रित ) है क्योंकि ऐसे उत्पादों का 60 प्रतिशत से भी अधिक संग्रहणकर्ताओं द्वारा स्वयं ही उपभोग कर लिया जाता है, जिसको अभिलेखित  नहीं किया जा सकता हैं।

ऐसा अनुमानित  है कि अकाष्ठ वन उत्पादों  को एकत्रित कर करोड़ों लोगों को रोजगार मिलता है। अकाष्ठ वन उत्पाद ( एन.डब्ल्यू.एफ.पी. ) लगभग 3,000 से भी अधिक वनस्पति प्रजातियों से प्राप्त होते हैं।

प्रभाग का इतिहासः-

                अकाष्ठ वन उपज प्रभाग का संक्षिप्त इतिहास इस प्रकार है:-

  1. 1906 में जब वन अनुसंधान संस्थान शुरू हुआ था, तब लघु वन उत्पादों को ( एन डब्ल्यू एफ पी ) आर्थिक शाखा के रूप में स्थापित किया गया, जिसकी अध्यक्षता श्री आर.एस. टूªप कर रहे थे।
  2. 1932 में आर्थिक शाखा का नाम बदलकर यूटिलाइजेशन ब्रांच हो गया था।
  3. 1942 में यह रसायन एवं लघु वन उत्पाद ब्रांच के रूप में परिरूपित की गई ।
  4. 1950 में संयुक्त रसायन एवं लघु वन उत्पाद ब्रांच अलग अलग हो गए ।
  5. 1993 में एम.एफ.पी. ब्रांच का नाम परिवर्तित होकर अकाष्ठ वन उपज ( एन डब्ल्यू एफ पी ) पड़ा और आज तक यह इसी नाम से प्रख्यात है।

 

अपने अस्तित्व में आने से लेकर आज तक यह  प्रभाग औषधीय एवं सुगंधित पौधांे, सुगंधित तेलों, गोंदों, रालों, टैन्स, वसीय तेलों, रंगों, रेशों एवं लोभकों इत्यादि पर अनुसंधान के विकास एवं विस्तार में सहायक हुआ है।  यह प्रभाग वन विभागों, उद्योगों, निजी उद्यमियों, किसानों एवं अनुसंधानकर्ताओं को  तकनीकी जांचों इत्यादि में परामर्श एवं प्रशिक्षण भी देता है।

 

अकाष्ठ वन उपज प्रभाग प्रमुखों के पदभार ( 20 वर्ष के दौरान ) हैं:-

1999 – 2004                                          डा0 पी.पी. भोजवैद, भा.व.से.

2004 – 2005                                          श्री के.के. चैधरी, भा.व.से.

2005 – 2006                                          डा0 आर. के. श्रीवास्तव, भा.व.से.

2006 – 2013                                          डा0 लोखोपुनी, भा.व.से.

फरवरी  2013 – आज तक          डा0 ए. के. शर्मा, एफ.एन.एस.ई.

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